जिस दिन हम तुच्छ एवं श्रेष्ठ से रहित हो जाएंगे उस दिन धूल के कण-कण में परमात्मा दिखाई देगा: अतुल कृष्ण महाराज


रक्कड़, पूजा: परम अवस्था में, परम सिद्धावस्था में न तो भक्ति रह जाती है, न ज्ञान. जब नदी सागर में गिरती है तो फिर कोई भी किनारा नहीं रह जाता, फिर तो नदी सागर हो गई. पर इससे पहले नदी को दोनों किनारों का सहारा लेना पड़ेगा. नदी जिद नहीं कर सकती कि मैं तो एक ही किनारे के सहारे आगे बढूंगी. तीन तरह के लोग इस संसार में हैं. एक वे जिन्होंने बुद्धि को पकड़ लिया है, दार्शनिक की तरह हैं. वे बाल की खाल निकालते रहते हैं. तर्क की सूखी रेत उनके जीवन में भर जाती है, सोचते बहुत हैं पर पहुंचते कहीं भी नहीं ।


       उक्त अमृतवचन श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस में परम श्रद्धेय अतुल कृष्ण जी महाराज ने नाग मंदिर, रक्कड़ में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि दूसरे वे लोग हैं जो गाते बहुत हैं, नाचते बहुत हैं लेकिन सब विवेक रहित है. ऐसे लोग विमुक्ति के करीब नहीं विक्षिप्तता के करीब ज्यादा हैं. तीसरे तरह के वे लोग हैं जिन्होंने दोनों का उपयोग कर लिया और दोनों के पार हो गए. संसार का सृजन परमात्मा का आनंद है. फूल जैसे अपनी सुगंध को लुटाने के लिए बेताब रहता है ऐसे परमात्मा संसार में अपने को लुटा रहा है. ईश्वर ने हमें आंख दी है कि हम रूप देख सकें, कान दिए हैं कि संगीत सुन सकें, हाथ दिए हैं कि जीवन का स्पर्श कर सकें, बुद्धि दी है कि हम समझ सकें. हमें हृदय दिया है कि हम हर्ष से आनंदित हो सकें. हमें जीवन दिया है ताकि हमारा जीवन एक महोत्सव बन सके. पर हम इतने कंजूस हो गए हैं कि उस परमात्मा को एक धन्यवाद देने में भी संकोच करते हैं. हमें याद रखना चाहिए कि प्रभु ने जो कुछ भी हमें दिया है उसके बदले हमारी पात्रता तो कुछ भी नहीं थी ।


            महाराज श्री ने कहा कि मनुष्य धूल से ही बना है और धूल में ही गिरेगा. परंतु वह धूल को तुच्छ समझता है, यह आदमी का अहंकार अद्भुत है. तुच्छ और श्रेष्ठ का विचार अहंकार की भाषा है. जिस दिन हम तुच्छ एवं श्रेष्ठ से रहित हो जाएंगे उस दिन धूल के कण-कण में परमात्मा दिखाई देगा. धूल ही हमारा हृदय भी है और हमारा मस्तिष्क भी. धूल ही हमारे कण-कण में है, हमारे रोम-रोम में है. हमारा मिट्टी से ही आना हुआ है, मिट्टी में वापस लौट जाना होगा. मिट्टी हमारी मां है. आज कथा में अजामिलोपाख्यान, प्रहलाद की भक्ति, श्री नरसिंह अवतार एवं श्रीवामन भगवान के प्राकट्य का प्रसंग लोगों ने अत्यंत श्रद्धा से सुना ।

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