असहाय अवस्था में बार-बार प्रभु का नाम निकलता है यह भी भजन का एक सुंदर रूप है. : अतुल कृष्ण जी महाराज



पूजा सूद, रक्कड़:  हम उसी में संतुष्ट और प्रसन्न रहें जो अपने श्रम से मिलता है. सद्बुद्धि जागृत होने पर मन तृष्णा शून्य हो जाता है. अपने परिश्रम से प्राप्त वस्तु में जो तृप्त है उसके जीवन में नैतिकता होगी. परमात्मा की जरूरत वहीं है जहां हम असहाय हो जाते हैं. हमारी असहाय अवस्था में बार-बार प्रभु का नाम निकलता है यह भी भजन का एक सुंदर रूप है. हमारे अंदर प्रेम की गहराई आते ही परमात्मा कुछ देने को राजी हो जाता है.


       उक्त अमृतवचन श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस में परम श्रद्धेय अतुल कृष्ण जी महाराज ने नाग मंदिर, रक्कड़ में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि तुम ईश्वर की ओर एक कदम चलो वह तुम्हारी ओर हजार कदम चलता है. प्रभु की ओर यह एक कदम चलना जरूरी है. क्योंकि जब तक हमारी ओर से संकेत न मिले की निमंत्रण है, तब तक परमात्मा कैसे आए. आना भी चाहे तो कैसे आए. जिसे तुमने निमंत्रण ही नहीं दिया है, जिसे तुमने बुलावा ही नहीं भेजा है वह आ भी जाए तुम्हारे द्वार पर तो तुम्हारे द्वार खुले न पायेगा. वह दस्तक भी दे, तो तुम समझोगे हवा का झोंका है. वह चिल्लाए, पुकारे भी तो तुम अपने भीतर के शोरगुल के कारण उसकी आवाज न सुन पाओगे ।

महाराजश्री ने कहा कि बुद्धि यानी संसार में कुशलता और सद्बुद्धि यानि परमात्मा पर निर्भरता. सामान्यत: यह देखा जाता है कि जिनको सद्बुद्धि होती है संसार उन्हें बुद्धू समझता है. जो दिखाई पड़ रहा है वह संसार है लेकिन हर दिखाई पड़ने वाले के भीतर जो अदृश्य छिपा है वही ईश्वरीय सत्ता है. बालक खेलकूद में आसक्त रहता है, युवक तरुणी के प्रेम में आसक्त हैं और वृद्धजन चिताओं में आसक्त रहते हैं. कभी भी मनुष्य परमात्मा के प्रति संलग्न नहीं हो पाता. हम परमात्मा को टालते चले जाते हैं, स्थगित करते चले जाते हैं ।

कल पर, और कल आती है सिर्फ मौत. जीवन के प्रति जिनकी आसक्ति नहीं टूटी परमात्मा से उनकी आसक्ति नहीं जुड़ पाती. आज कथा में  भगवान शुकदेव का गंगा के तट पर आगमन, सृष्टि वर्णन, मुक्ति के प्रकार, भगवान के 24 अवतार, देवहूति एवं कर्दम ऋषि का प्रसंग, भगवान कपिल का प्राकट्य एवं अष्टांग योग का वर्णन सभी ने अत्यंत भाव से सुना। कथा से पूर्व श्रीमद् भागवत जी की शोभायात्रा भी निकाली गई. कथा प्रतिदिन दोपहर 2 से 5 बजे तक 2 जून तक जारी रहेगी ।

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