किरण राही ( मंडी)।
बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए माकपा के जिला सचिव कुशाल भारद्वाज ने कहा कि यह बजट गरीब विरोधी, महिला विरोधी, युवा विरोधी, मजदूर विरोधी और अन्नदाता विरोधी है।
उन्होंने कहा कि यह बजट भाजपा एवं पीएम मोदी के कॉरपोरेट मित्रों के लिए बोनस तथा विदेशी कंपनियों के लिए बिछाया लाल कालीन है। किसानों और मजदूरों के कल्याण हेतु इस बजट में शून्य बढ़ोतरी की गई है। फसल पालन और उर्वरकों के लिए बजट आवंटन में भारी कटौती की गई है।
माकपा का मानना है कि बेरोजगारी के उच्च स्तर, उच्च खाद्य मुद्रास्फीति दर, असमानताओं में अभूतपूर्व वृद्धि और निजी निवेश में आर्थिक मंदी की वास्तविकताओं के संदर्भ में, बजट को आर्थिक गतिविधियों के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था।
इसके बजाय, इसके प्रस्ताव संकुचनकारी और प्रतिगामी हैं। इससे लोगों पर और अधिक संकट आएंगे तथा निवेश और रोजगार सृजन के स्तर में गिरावट आएगी। बजट के आंकड़े बताते हैं कि सरकार की राजस्व आय में 14.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि व्यय में केवल 5.94 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
इन राजस्वों का उपयोग आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए करने के बजाय, इसका उपयोग राजकोषीय घाटे को कम करने, अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी को खुश करने के लिए किया गया है, जो जीडीपी के 5.8 प्रतिशत से 4.9 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
उन्होंने कहा कि बजट में अनुमानित जीडीपी गणना डेटा हेराफेरी का एक और प्रयास है। नाममात्र जीडीपी वृद्धि 10.5 प्रतिशत अनुमानित है। 6.5 से 7 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाने वाली वास्तविक जीडीपी की गणना नाममात्र वृद्धि को 3 प्रतिशत की ‘कोर’ मुद्रास्फीति दर से कम करके की जाती है, जिसमें 9.4 प्रतिशत की उच्च खाद्य मुद्रास्फीति दर शामिल नहीं है, इस प्रकार वास्तविक जीडीपी वृद्धि को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।
सरकारी खर्च को और कम करने के लिए सब्सिडी में भारी कटौती की गई है। उर्वरक सब्सिडी में 24894 करोड़ रुपये और खाद्य सब्सिडी में 7082 करोड़ रुपये की कटौती की गई है। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास पर व्यय कमोबेश अपरिवर्तित रहेगा। मनरेगा की उपेक्षा जारी है।
जिसका बजटीय आवंटन 86,000 करोड़ रुपये है जो वित्त वर्ष 23 में खर्च किए गए धन से कम है। हालांकि, इस वित्तीय वर्ष के पहले चार महीनों में 41,500 करोड़ रुपये पहले ही खर्च किए जा चुके हैं, जिससे शेष आठ महीनों के लिए केवल 44,500 करोड़ रुपये ही बचे हैं। स्पष्ट रूप से, ग्रामीण भारत में बेरोजगारी के गहरे संकट से निपटने के लिए यह राशि पूरी तरह से अपर्याप्त होगी।
उन्होंने कहा कि बेरोजगारी दूर करने के नाम पर बजट में नौटंकी की गई है। रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के तहत औपचारिक क्षेत्र में नए प्रवेशकों को एक महीने का वेतन दिया जाएगा, जिनकी आय एक लाख रुपये से कम है। पात्र श्रमिकों को तीन मासिक किस्तों में अधिकतम 5,000 रुपये मिलेंगे। हालांकि, नियोक्ताओं को दो साल में हर नए रोजगार के लिए 24 मासिक किस्तों में 1 लाख रुपये तक के मासिक वेतन पर नियुक्त प्रत्येक नए कर्मचारी के लिए 72,000 रुपये का लाभ मिलेगा।
यह नए रोजगार पैदा करने के नाम पर कॉरपोरेट को सब्सिडी देने का एक और तरीका है। इस तरह की नौटंकी से रोजगार पैदा नहीं हो सकता। कॉरपोरेट क्षेत्र द्वारा अतीत में किए गए भारी मुनाफे के कारण मशीनरी और उत्पादन में निवेश नहीं हुआ है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में मांग की कमी बनी हुई है, जो लोगों के बीच घटती क्रय शक्ति का परिणाम है।
बजट में भारत के युवाओं में कौशल बढ़ाने की योजनाओं पर भी जोर दिया गया है। इससे भी बेरोजगारी की समस्या हल नहीं होने वाली है। 2016 और 2022 के दौरान कौशल संवर्धन योजनाओं के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले केवल 18 प्रतिशत युवाओं को ही नौकरी मिल पाई। एक बार फिर, जब तक अर्थव्यवस्था का विस्तार नहीं होगा, रोजगार के अवसर नहीं बढ़ सकते।
‘सहकारी संघवाद’ की तमाम बातों के बावजूद, आंध्र प्रदेश और बिहार को छोड़कर, राजनीतिक मजबूरियों के कारण राज्य सरकारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इस एनडीए गठबंधन सरकार का अस्तित्व सहयोगी दलों, खासकर तेलुगु देशम पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) के समर्थन पर निर्भर करता है। हालांकि, राज्यों को वित्त आयोग अनुदान (कर हस्तांतरण के अलावा) 2022-23 में 172760 करोड़ रुपये से घटाकर 2023-24 में 140429 करोड़ रुपये कर दिया गया है और इस बजट ने इसे और घटाकर 132378 करोड़ रुपये कर दिया है।
उन्होंने कहा कि इस बजट का उद्देश्य अमीरों को और समृद्ध बनाना तथा गरीबों को और गरीब बनाना है। इसमें भारत के अति-धनवानों पर संपत्ति या उत्तराधिकार कर लगाने के किसी भी प्रस्ताव पर विचार करने से इनकार कर दिया गया और आम लोगों पर अप्रत्यक्ष कर के बोझ में कोई राहत भी नहीं दी गई।