अहंकार है विनाश का कारण, अहंकार से बचना है औरों को भी बचाना है


विपुल गुप्ता, सुजानपुर, न्यूज़ हिमाचल 24

एस एस जैन सभा जैन स्थानक में  प्रवचन करते हुए मधुर वक्ता रचित मुनि महाराज ने अपने मुखारविंद से कहा की अहंकार विनाश का कारण बनता है इसलिए हम सबको अहंकार से बचाना है औरों को भी बचाना है जिस व्यक्ति के मन में अहंकार आ जाता है ।

फिर वह कहीं के या नहीं रहता ऐसे में कोशिश करनी चाहिए की हमेशा विनम्र स्वभाव बना रहे अहंकार का पौधा दिल और दिमाग में ना पनपे अपने संबोधन के दौरान जैन मुनि ने एक वृतांत सुनाते हुए कहा कि इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया की अपने पति प्रिंस के बीच कहासुनी हो गई दोनों के बीच इतना तकरार हो गया कि एक दूसरे की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करते आखिर रोज-रोज के क्लेश से महारानी विक्टोरिया परेशान होकर महल से दूसरे महल में रहने के लिए चली गई कुछ दिन बीते फिर पति की यादें सताने लगी यादें आने लगी ओर फिर एक दिन वह फिर उसी महल की ओर चल पड़ी जहाँ उसके पतिदेव देव थे महल का दरवाजा खटखटाया अंदर से आवाज आई कौन ? रानी बोलयी मैं हूं इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया रानी ने अभिमान भरे शब्दों में कहां,जिसके चलते गेट नही खुला दो तीन बार ऐसे हुआ पर महल का गेट नही खुला रानी ने फिर दरवाजा खटखटाया फिर अंदर से आवाज आई कौन लेकिन अब महारानी के शब्दों में चेंज था वह बोली मैं हूं तुम्हारी पत्नी विक्टोरिया इतना कहते ही महल का गेट तुरन्त खुल गया जैन मुनि ने कहा की इस कथा का भाव यही है कि जब अहंकार गिर जाता है ।

अभिमान गिर जाता है तब परमात्मा का द्वार खुल जाता है। जब बीज टूटता है तभी वृक्ष अंकुरित होता है, जब जब हम परमात्मा के द्वार पर अहंकार को लेकर जाते हैं तब तब परमात्मा का द्वार हमे सदा बंद मिलेगा । तो जो अहंकार अभिमान, अहम से भरे हैं उनके लिए परमात्मा का द्वार बंद, और जो अहंकार से पूर्णतः रिक्त होते हैं परमात्मा का द्वार उनके लिए सदा खुला रहता है।

  आज जो धर्म के नाम पर संप्रदायों की बाढ सी आ रही है,वो सिर्फ आदमी के अहंकार की देन है । क्योंकि संप्रदाय अहंकार का प्रतीक है और धर्म जीने की कला का नाम है अहंकार आदमी आदमी के बीच भेदभाव की रेखा यानी, संप्रदाय बांटने का काम करता है, तोड़ने का काम करता है । जबकि धर्म जोड़ने का काम करता है इस दौरान मधुर कंठी तेजस मुनि महाराज ने अपने धर्म स्तुति गायन से सबका मन मोह लिया।

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