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आज शनि प्रदोष व्रत है, हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का खास महत्व होता है। शनिवार को होने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। शनि प्रदोष व्रत से भक्त को शिव के साथ पार्वती का आशार्वाद मिलता है तो आइए हम आपको शनि प्रदोष व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें शनि प्रदोष व्रत के बारे में
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो लोग शनि प्रदोष व्रत रखकर शिव पूजा करते हैं और कथा सुनते हैं, उनको पुत्र की प्राप्ति होती है। इस साल शनि प्रदोष व्रत 24 मई शनिवार को है। यह ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत है। शनिवार को होने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष के नाम से जानते हैं। इस बार शनि प्रदोष व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 1 घंटा 54 मिनट का है। उस दिन सौभाग्य योग में प्रदोष व्रत की पूजा की जाएगी। हर माह में दो बार प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस व्रत में भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है। इस दिन सच्चे मन से भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह व्रत करने से घर की सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है। पंडितों के अनुसार इस दिन शिव उपासना करने से महादेव के साथ देवी पार्वती का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शनि प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक सेठ का परिवार रहता था। उनके पास किसी भी प्रकार के सुख और सुविधाओं की कोई कमी नहीं थी। लेकिन सेठ और उसकी पत्नी काफी दुखी रहते थे क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। सेठ को इस बात की चिंता थी कि उसका वंश आगे कैसे बढ़ेगा। एक दिन सेठ और सेठानी ने विचार किया और अपना सारा कामकाज अपने नौकरों को सौंप दिया। इसके बाद सेठ और सेठानी तीर्थयात्रा पर निकल गए। नगर से कुछ दूर बाहर निकलने पर उनको एक साधु मिले, जो ध्यान लगाए बैठे थे. सेठ के मन में आया कि क्यों न इस साधु के दर्शन करके आशीर्वाद ले लें और फिर तीर्थयात्रा पर आगे बढ़ें। वे सेठानी को साथ लेकर साधु के पास गए और उनके पास जाकर बैठ गए। काफी समय बीत जाने के बाद साधु ध्यान की मुद्रा से बाहर आए तो उनको लगा कि सेठ और सेठानी काफी समय से उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। आज्ञा पाकर सेठ और सेठानी ने साधु को प्रणाम किया और अपने बारे में जानकारी दी। उन्होंने सेठ और सेठानी से कहा कि वे उनके कष्ट को जानते हैं। इसका सबसे आसान उपाय है शनि प्रदोष का व्रत। तुम दोनों विधि विधान से शनि प्रदोष का व्रत रखो और तुम पर महादेव की कृपा होगी और संतान की प्राप्ति होगी।
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उसके बाद उस साधु ने सेठ और सेठानी को शनि प्रदोष व्रत की विधि बताई। सेठ और सेठानी इस उपाय को जानकर बेहद खुश हुए। वे दोनों साधु का आशीर्वाद लेकर खुशी खुशी तीर्थ यात्रा पर चले गए। वहां से लौटकर आने के बाद उन दोनों ने विधि विधान से शनि प्रदोष का व्रत रखा और दक्षिणा दिया। भगवान शिव की कृपा से सेठ और सेठानी को पुत्र की प्राप्ति हुई। इस प्रकार से जो भी शनि प्रदोष का व्रत रखकर शिव पूजा करेगा, शनि प्रदोष की व्रत कथा सुनेगा, निश्चित ही उसे शिव कृपा प्राप्त होगी, उसे भी संतान सुख का सौभाग्य प्राप्त होगा।
शनि प्रदोष व्रत मई 2025 का शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी तिथि का शुभारंभ: 24 मई, शनिवार, 7:20 पीएम से
ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी तिथि का समापन: 25 मई, रविवार, 3:51 पीएम पर
शनि प्रदोष पूजा का मुहूर्त: शाम 7:20 बजे से रात 9:13 बजे तक
निशिता मुहूर्त: देर रात 11:57 पीएम से 12:38 एएम तक
सौभाग्य योग: दोपहर 3 बजकर 1 मिनट से रात तक
मई महीने का आखिरी प्रदोष
मई महीने का आखिरी प्रदोष हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 24 मई शाम 7:20 मिनट पर शुरू होगी, जो कि 25 मई 2025 को दोपहर 3:51 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि पड़ने के कारण यह 24 मई को प्रदोष व्रत किया जाएगा। मई महीने का आखिरी प्रदोष शनिवार इसलिए शनि प्रदोष कहा जाएगा।
शनि प्रदोष व्रत का महत्व
शनिवार के दिन पड़ने के कारण आप इस दिन भोलेनाथ के साथ-साथ शनिदेव की भी पूजा अर्चना कर सकते हैं। अगर आपकी कुंडली में शनि की स्थिति कमजोर है तो फिर इस दिन शनि मंदिर में जाकर पूजा पाठ कर सकते हैं। इससे आप पर शनि देव की कुदृष्टि का असर कम होगा।
शनि प्रदोष व्रत का पारण समय
शनि प्रदोष का पारण समय 25 मई को सुबह 5:26 मिनट पर है।
शनि प्रदोष व्रत पर करें ये उपाय
शिवलिंग पर तिल के तेल से अभिषेक करें
इस दिन भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है। प्रातःकाल स्नान करने के बाद शिवलिंग पर तिल के तेल से अभिषेक करें। ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही शनिदेव को तिल या सरसों का तेल चढ़ाएं। शास्त्रों के अनुसार इन दोनों देवताओं की कृपा से दुर्भाग्य दूर होता है।
पीपल की करें पूजा
शनिवार को त्रयोदशी तिथि होने के कारण पीपल के वृक्ष की पूजा अत्यंत फलदायक मानी जाती है। स्नान के बाद गंगाजल में काले तिल मिलाकर पीपल को अर्घ्य दें। साथ ही वृक्ष की जड़ में पांच प्रकार की मिठाइयां अर्पित करें और 11 बार उसकी परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय अपनी इच्छाओं का मन ही मन उच्चारण करें। शास्त्रों के अनुसार इस उपाय से मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं और शनि से जुड़ी नकारात्मकता समाप्त होती है। यह उपाय खासतौर पर उन लोगों के लिए लाभकारी है जो लंबे समय से संघर्षों का सामना कर रहे हैं।
शनि प्रदोष व्रत एक अद्भुत योग है जिसमें शिव और शनि दोनों देवताओं की कृपा एक साथ प्राप्त की जा सकती है। यह दिन व्रत, उपासना और ध्यान के माध्यम से नकारात्मकता को समाप्त कर जीवन में शुभता लाने का अवसर प्रदान करता है।
– प्रज्ञा पाण्डेय
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