भूंडा महायज्ञ:– बेड़ा सूरत राम ने 9वीं बार रस्सी के सहारे पार की खाई, 4 दशक बाद फिर रचा इतिहास



शिमला

देश में जहां महाकुंभ की खुमारी छाई हुई है, वहीं हिमाचल प्रदेश की पावन धरती पर एक अद्वितीय साहस और आस्था का महायज्ञ सुर्खियों में है। यह ऐसा आयोजन है, जिसमें आस्था ने जीवन के जोखिम पर विजय पाई। ऐतिहासिक भूंडा महायज्ञ के चौंकाने वाले कारनामों के बारे में सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। हर किसी की सांसें उस समय थम गईं, जब 65 वर्षीय सूरत राम ने अपने जीवन में नौवीं बार मौ*त की घाटी को अपनी बनाई रस्सी के सहारे पार किया।

महायज्ञ की तैयारी एक साल से चल रही थी। देवभूमि की धरती पर 39 साल बाद इतिहास दोहराया गया। 3 जनवरी को देवताओं के आगमन से इस आयोजन की शुरुआत हुई। पवित्र वादियों में नगाड़ों, शहनाई और करनाल की ध्वनि ने भक्तिमय माहौल को दिव्यता प्रदान की। महायज्ञ के दूसरे दिन शिखा पूजन और फेर रस्म पारंपरिक विधियों और मंत्रोच्चारण के साथ संपन्न हुई। ये पल गहरी आस्था और आत्मिक शांति के प्रतीक थे।

स्पीति घाटी के बकरालू महाराज के मंदिर के प्रांगण में इस रोमांचक धार्मिक आयोजन में देवभूमि की परंपराओं और आस्थाओं का संगम देखने को मिला। अनुयायियों ने परंपरागत हथियारों और वाद्य यंत्रों के साथ देवताओं का स्वागत किया, जिससे सांस्कृतिक धरोहर जीवंत हो उठी। ढोल-नगाड़ों की गूंज और भक्तों के जोशीले नृत्य ने पूरे वातावरण को मंत्रमुग्ध कर दिया।


5 जनवरी को वह क्षण आया जिसका सभी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। प्रतीकात्मक मानव बलि महायज्ञ का मुख्य आकर्षण थी। सूरत राम ने घास की रस्सी पर लकड़ी की काठी के सहारे नौवीं बार फिसलते हुए मौत की घाटी को पार किया। हालांकि, दोपहर करीब एक बजे रस्सी टूट गई थी, लेकिन कुछ घंटों बाद इसे फिर से शुरू किया गया।


महायज्ञ की प्रक्रिया हवन कुंड से शुरू हुई। बेड़ा व्यक्ति को प्रतीकात्मक मानव बलि के रूप में चढ़ाया गया। मंत्रोच्चारण के साथ बेड़े को रस्सी पर फिसलने के लिए तैयार किया गया। रस्सी, जिसे स्वच्छ नाले में भिगोया गया था, को ऊंची चोटी पर बांधा गया। रस्सी का एक सिरा ऊपरी लकड़ी के खंभे में और दूसरा सिरा 300 मीटर नीचे ढलान पर स्थित खंभे में बांधा गया।


लकड़ी की अखरोट से बनी काठी, जो विशेष रूप से रस्सी पर बांधी गई थी, पर बेड़े को बैठाया गया। संतुलन बनाए रखने के लिए काठी के दोनों ओर रेत से भरी बोरियां बंधी हुई थीं। बेड़े के दोनों हाथों में सफेद कपड़े के झंडे दिए गए थे। जब बेड़ा नीचे की ओर फिसला, तो हजारों लोग सांस रोके इस दृश्य को देख रहे थे। नीचे पहुंचने पर देवताओं ने बेड़े का स्वागत किया।


हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉक्टर  भवानी सिंह बताते हैं कि भूंडा महायज्ञ पौराणिक और वैदिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है। यह आयोजन हिमाचल के इतिहास और संस्कृति की गहराई को दर्शाता है। इसकी शुरुआत भंडासुर नामक पौराणिक कथा से मानी जाती है। उनके अनुसार, भूंडा महायज्ञ की परंपरा मंडी जिले के काव नामक स्थान से आरंभ हुई, जो ममेल, निरथ, दत्तनगर और कुल्लू के निरमंड जैसे स्थानों तक फैली।
इस आयोजन ने हिमाचल प्रदेश की धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि को पुनः जीवंत किया।

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