रक्कड़ (कांगड़ा)। सिर्फ ज्ञानी ही मानते हैं कि वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी तो सभी यही मानते हैं कि वे ज्ञानी ही हैं. अगर किसी पागल को यह समझ में आ जाए कि मैं पागल हूं तो वह ठीक हो जाएगा. पागल को समझ में नहीं आता कि वह पागल है; वह तो यही समझता है कि दुनिया पागल है. मूढ़ता हमारी बीमारी है जिसकी औषधि है गोविंद का भजन ।
उक्त अमृतवचन श्रीमद् भागवत कथा के समापन सत्र में अतुल कृष्ण महाराज ने नाग मंदिर, रक्कड़ में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि महान संत गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के जीवन की कथा है कि उनकी धर्मपत्नी मायके गई हुई थी. वर्षा की रात में सांप को पड़कर वे घर के पीछे से आंगन में कूद गए. वासना की मूढ़ता इतनी गहरी रही होगी की सांप भी दिखाई न पड़ा, रस्सी समझ में आया. कामना ने बिल्कुल अंधा कर दिया होगा. आंखें बिल्कुल अंधेरे से भर गई होंगी, नहीं तो सांप दिखाई न पड़े, ऐसा कैसे हो सकता है. गोस्वामी जी महाराज की धर्मपत्नी ने उनकी यह दशा देखकर के कहा कि आपका जितना प्रेम मुझसे है ।
अगर इतना ही प्रेम परमात्मा से होता तो तुम अब तक महापद के अधिकारी हो जाते. पीछे लौटकर सांप को देखा, मन में विचार आया कि मेरी वासना ने मुझे कितना अंधा बना दिया. गहराई में उतरा हुआ यह विचार क्रांति को घटित कर गया. उनकी पत्नी गुरु बन गई. वासना ने निर्वासना की ओर प्रेरित कर दिया, जीवन संन्यस्त हो गया. परमात्मा को खोजने लगे. काम में जो शक्ति लगी थी वह अब राम की तलाश करने लगी. जो ऊर्जा काम बनती थी वही ऊर्जा अब राम बनने लगी ।
महाराज ने कहा कि प्रभु से जो दूर हैं वे दया के पात्र एवं अभागे हैं. बहते पानी की तरह भलाई करते रहिए, बुराई कचरे की तरह खुद ही किनारे लग जाएगी. आज कथा में जरासंध का वध, पांडवों का राजसूय यज्ञ, शिशुपाल का उद्धार, सुदामा को दिव्य ऐश्वर्य की प्राप्ति, भगवान का स्वधाम गमन एवं राजा परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति का प्रसंग सभी ने अत्यंत श्रद्धा से सुना ।