मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं मां त्रोकड़ावाली, पत्थर फाड़कर प्रकट हुई थी मां की दिव्य मूर्ति

हर वर्ष भाद्रपद कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को होता है भव्य जाग का आयोजन

तुंगल घाटी की सुरम्य वादियों में बसा त्रोकड़ा धाम आस्था और श्रद्धा का जीवंत प्रतीक है। मान्यता है कि मां अंबिका माता नाऊ-पनाऊ की कृपा से दुर्गा रूप में एक पत्थर से प्रकट हुईं और उनके एक अनोखे भक्त और देवी मां के अद्भुत आशीर्वाद से इस धाम की स्थापना हुई।

जब भक्त ने ली मां की परीक्षा


माता जब त्रोकड़ नाला में प्रकट हुई तो लोगों को विश्वास दिलाने के लिए भक्त लाभ सिंह ने मां से अरदास की कि माता अगर आप सचमुच में यहां स्थाई रूप से प्रकट हो गई हैं तो मैं तभी मानूंगा अगर आप आधे घंटे में बारिश करोगी। आसमान साफ था, 40-50 लोगों के सामने मैंने बारिश के लिए अरदास तो लगा दी लेकिन, मन थोड़ा आशंकित था।

पूजा आरती करके सभी अपने घरों को निकल गए। जैसे ही में घर पहुंचा साफ आसमान में बादल छाए, अचानक बिजली चमकी और बरसात शुरू हो गई।त्रोकड़ा नाला से त्रोकड़ा धाम का नाम कैसे पड़ा त्रोकड़ा नाला से त्रोकड़ा धाम नाम इसलिए पड़ा, क्योंकि धामों से चीरकाल से ही मनुष्य को, अपनी इच्छाओं की पूर्ति से लेकर, गति व मोक्ष तक प्राप्त होता है।

इसलिए महामायी त्रोकड़ा की कृपा से अब वहीं पर ही पितरों का उद्धार, संतान प्राप्ति, भूत-प्रेत साया को दूर करना, नवग्रहों की शान्ति संबंधी अनुष्ठान किए जाते हैं। यहां नशीले पदार्थ पूरी तरह से त्याज्य हैं।  इसके अलावा किसी भी प्रकार के पूछ-प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं। विशेष बात यह कि उनका विवरण लिखित रूप में रजिस्टर में दर्ज किया जाता है।

यहां आज प्राणी, पशु, पक्षी की बलि प्रथा से हटकर केवल एक ही नारियल से सभी कार्यों को सफल किया जाता है। इसके बहुत से प्रमाण जो मन्दिर में हस्त लिखित रजिस्टर में दिनांक सहित दर्ज किये जाते हैं।पुजारी लाभ सिंह की भक्तिलाभ सिंह जी ने 1960 के दशक से मां की भक्ति आरंभ की।

अंबिका माता नाउ-पनाऊ के अनन्य भक्त कई वर्षों तक कठिन परीक्षाओं से गुजरे, कभी बीमारी, कभी आर्थिक तंगी, तो कभी पारिवारिक संकट। फिर भी वे मां के दरबार तक पहुँचने के लिए लहूलुहान पैरों से भी पैदल यात्रा करते।मां ने उन्हें स्वप्नों और दृष्टांतों में दर्शन दिए। एक बार सपने में उन्होंने देखा कि भव्य मंदिर में मां दुर्गा सिंह (शेर) पर विराजमान हैं। मां ने संकेत दिया कि यही उनका धाम होगा।


मंदिर निर्माण की चुनौतियाँ धाम की स्थापना आसान नहीं थी। पैसों की कमी, आलोचनाएँ और प्रशासनिक दिक्कतों ने मार्ग रोका। फिर भी पुजारी जी ने हिम्मत नहीं हारी। धीरे-धीरे भक्तों का सहयोग मिला और मंदिर निर्माण संभव हुआ। मंदिर में हर वर्ष भाद्रपद कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को जाग होती है जिसमें माता के गूर देववाणी करते हैं। श्रद्धालुओं की ओर से भजन-कीर्तन व भंडारे का आयोजन भी किया जाता है।


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