कुल्लू, कुल्लू जिले के मनाली के समीप बसे बरूआ गांव के युवा चंद्रसेन ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि अगर मन में दृढ़ संकल्प और वैज्ञानिक सोच हो, तो पहाड़ों की धरती पर भी सफलता के फूल खिल सकते हैं।मुख्यमंत्री मधु विकास योजना (MMVY) की सहायता से शुरू हुई उनकी यह यात्रा आज “मौन क्रांति” का प्रतीक बन चुकी है, जिससे न केवल वे स्वयं आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि अपने गांव के अन्य युवाओं के लिए भी प्रेरणा बन गए हैं।

चंद्रसेन ने अपनी यात्रा करीब कुछ वर्ष पूर्व शुरू की। प्रारंभ में उन्होंने केवल कुछ छत्तों से मधु पालन का कार्य आरंभ किया। लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आया कि यदि यह कार्य वैज्ञानिक ढंग से किया जाए, तो यह एक मजबूत स्वरोजगार का माध्यम बन सकता है। इसी सोच के तहत उन्होंने डॉ. वाई.एस. परमार उद्यान विश्वविद्यालय, नौणी (सोलन) और सीएसके हिमाचल कृषि विश्वविद्यालय, बजौरा केंद्र से मधु पालन का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

मुख्यमंत्री मधु विकास योजना के तहत उन्हें ₹1,74,000 का अनुदान प्राप्त हुआ, जिससे उन्होंने आधुनिक उपकरण, मधु निष्कर्षण यूनिट, और बी ब्रीडिंग बॉक्स स्थापित किए। यह सहयोग उनके उद्यम की बुनियाद बना। शहद उत्पादन में आधुनिक तकनीक और स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों का अनूठा संयोजन करते हैं। वे स्टेनलेस स्टील हनी एक्सट्रैक्टर, फिल्टरिंग यूनिट, और क्वालिटी टेस्टिंग उपकरण का उपयोग करते हैं।

उनके शहद की खासियत यह है कि यह पूरी तरह प्राकृतिक और रासायनिक मुक्त है। इसमें स्थानीय पुष्पों जैसे बुरांश, अखरोट, और सेब के फूलों का रस शामिल होता है, जो इसे ‘पहाड़ी शहद’ के रूप में विशिष्ट बनाता है। बी ब्रीडिंग (Bee Breeding) की वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर उन्होंने अपने उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार किया और स्थानीय बाजार में अपनी अलग पहचान बनाई।
आज चंद्रसेन के पास सैकड़ों मधुमक्खी कॉलोनियां हैं, जिनसे वे हर वर्ष 3 से 4 लाख रुपये तक की शुद्ध आय अर्जित करते हैं।
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