किरण राही मंडी ।
राज्य में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के संबंध में हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव और अधिकारियों के साथ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी संसदीय समिति की बैठक मैं भाई चंद्रशेखर से हिमाचल प्रदेश के मुद्दों को लेकर बात रखी गई ।जिसे उन्होंने इस बैठक में प्राथमिकता के तौर पर उठाया है।
सामाजिक भेदभाव और जातिगत असमानता_अनुसूचित जाति के लोग, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, मंदिर प्रवेश, सामाजिक आयोजनों और सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव का सामना करते हैं।सामाजिक बहिष्कार और छिटपुट जातिगत हिंसा (जैसे भूमि विवाद) अभी भी मौजूद हैं, हालांकि बड़े पैमाने पर हिंसा कम है।
आर्थिक चुनौतियाँ _गरीबी और बेरोजगारी: अनुसूचित जाति समुदाय के लोग अक्सर कम वेतन वाली या अकुशल नौकरियों तक सीमित हैं। हिमाचल में सीमित औद्योगिक अवसरों के कारण रोजगार की कमी एक बड़ी समस्या है।भूमि स्वामित्व: कई परिवारों के पास पर्याप्त कृषि भूमि नहीं है, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित होती है।ऋण की जटिलता: हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति और जनजाति विकास निगम के माध्यम से ऋण उपलब्ध हैं, लेकिन जटिल प्रक्रियाएँ लाभ को सीमित करती हैं।
शिक्षा और कौशल विकासशिक्षा में बाधाएँ: ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की कमी और आर्थिक तंगी के कारण ड्रॉपआउट दर अधिक है।कौशल की कमी: तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण की अपर्याप्तता के कारण आधुनिक नौकरियों के लिए तैयारी में कमी है।
स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाएँदुर्गम क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और स्वच्छ पेयजल जैसी सुविधाओं की कमी।सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव जीवन को और कठिन बनाता है।

नौकरियों में बैकलॉग और रोस्टर का मुद्दा (2002 से)बैकलॉग की समस्या: हिमाचल प्रदेश में 2002 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सरकारी नौकरियों में बैकलॉग (पिछड़े हुए रिक्त पद) एक गंभीर मुद्दा रहा है। कई विभागों में आरक्षित पदों को समय पर नहीं भरा गया, जिससे अनुसूचित जाति समुदाय के लिए रोजगार के अवसर सीमित हुए हैं।रोस्टर प्रणाली का गैर-अनुपालन: रोस्टर प्रणाली, जो आरक्षित वर्गों के लिए नौकरियों में उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती है, का प्रभावी कार्यान्वयन नहीं हो पाया है। कई मामलों में रोस्टर का पालन न होने के कारण अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को उनके हक की नौकरियाँ नहीं मिलीं।
प्रशासनिक लापरवाही: बैकलॉग को भरने के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाने की माँग लंबे समय से उठ रही है, लेकिन प्रशासनिक सुस्ती और नीतिगत देरी के कारण प्रगति धीमी रही है। इससे समुदाय में असंतोष बढ़ा है।
राजनीतिक और प्रशासनिक मुद्दे प्रतिनिधित्व की कमी: आरक्षित सीटों के बावजूद, अनुसूचित जाति का नीति निर्माण में प्रभावी नेतृत्व सीमित है।आयोग की भूमिका: हाल ही में गठित अनुसूचित जाति आयोग (अध्यक्ष: कुलदीप कुमार धीमान) सामाजिक न्याय के लिए काम कर रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने की जरूरत है।
सांस्कृतिक और पहचान के मुद्देअनुसूचित जाति की सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं को मुख्यधारा में मान्यता की कमी।जातिगत पहचान के कारण भेदभाव का डर बना रहता है।
अनुसूचित जाति के लोगों के लिए नगर निगम एक्ट में प्रावधान के बावजूद दुकानों के आवंटन में धोखा किया जा रहा है एक्ट में प्रावधान है कि जो भी दुकान बनेगी उसके 5% अनुसूचित जाति के लोगों को दी जाएगी लेकिन नगर निगम नगर परिषद और पंचायतें इस एक्ट को फॉलो नहीं कर रही है।
सफाई कर्मचारियों की भरती ठेके पर की जा रही है जबकि सरकारी कर्मचारी जो रिटायर हो रहे हैं अर्थात सफाई कर्मचारी जो रिटायर हो रहे हैं उनके पद खाली होने के बावजूद नियमित भर्ती नहीं की जा रही है शिमला नगर निगम के अंदर रिटायर होने के बाद कोई नियमित भर्ती नहीं की गई सब ठेके पर दिया जा रहा है यह सफाई कर्मचारियों के साथ अन्याय है।
एससी एसटी विकास निधि के बजट का आवंटन निष्पक्ष तरीके से पूरे प्रदेश में होना चाहिए।
एससी एसटी बैकलॉग को नियमित तरीके से फिर से उसी श्रेणी में आवंटन हो।
सरकारी पदों पर जितने भी नियुक्तियां हो उसमें संवैधानिक तरीके से आरक्षण का प्रावधान हो।
FRA को सही तरीके से पूरे प्रदेश में लागू किया जाए ताकि भूमिहीन लोगों को भी इसका लाभ मिल सके।
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