सुशासन आदर्श नहीं बल्कि व्यावहारिकदृष्टिकोण है अब- राज्यपाल


राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि डिजिटल तकनीक के माध्यम से संसाधनों का कुशल प्रबंधन सेवाओं की पारदर्शिता और नीति निर्माण में भागीदारी बढ़ी है। उन्होंने कहा की सुशासन अब केवल एक आदर्श नहीं बल्कि एक व्यवहारिक दृष्टिकोण बन चुका है।


राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने ये बात आज तपोवन स्थित विधान सभा परिसर में राष्ट्र मण्डल संसदीय संघ सम्मेलन भारत क्षेत्र-2 के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर अपने संबोधन में कही।उन्होंने राष्ट्र मण्डल संसदीय संघ सम्मेलन भारत क्षेत्र-2 की इस महत्वपूर्ण वार्षिक कॉन्फ्रेंस के आयोजन के लिए आयोजकों को हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि हिमाचल प्रदेश के इस पावन स्थल तपोवन में आयोजित यह संवाद निश्चित ही हमारे लोकतंत्र की समृद्ध परंपरा को और अधिक सशक्त बनाने वाला है।


उन्होंने कहा कि ये अपार प्रसन्नता है कि लोक सभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने सम्मेलन का शुभारम्भ किया।राज्यपाल ने कहा कि मुझे इसके समापन अवसर पर संबोधित करने का अवसर मिला है। मैं यहां उपस्थित राज्यसभा के उप-सभापति हरिवंश नारायण सिंह का यहां आने पर स्वागत करता हूं। विभिन्न प्रदेशों से आए
सदस्यों का भी समस्त प्रदेशवासियों की ओर से देवभूमि आगमन पर स्वागत करता हूं।


राज्यपाल ने कहा कि 30 जून को “राज्य संसाधनों के प्रबंधन में विधायिकाओं की भूमिका एवं राज्य के विकास” विषय पर आयोजित विचार-मंथन किया गया। उन्होंने कहा कि मैं समझता हूं कि लोकतंत्र में विधायिका केवल कानून बनाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह राज्य के समग्र संसाधनों-आर्थिक, प्राकृतिक व मानव संसाधन के न्यायसंगत, पारदर्शी और उत्तरदायी उपयोग की दिशा तय करने वाली संस्था है।


उन्होंने कहा कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संसाधन सीमित हैं और अपेक्षाएं अनंत। ऐसे में विधायिकाओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे बजट, नीतियों और योजनाओं के निर्माण एवं निगरानी में सकारात्मक, दूरदर्शी और जनहितकारी भूमिका निभाएं।
राज्यपाल ने कहा कि आज “दलबदल कानून – संविधान की 10वीं अनुसूची के अंतर्गत अयोग्यता की धाराएं” तथा “विधायिकाओं में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) का उपयोग” जैसे विषयों पर चर्चा हुई है।


दलबदल कानून लोकतंत्र की शुचिता की रक्षा के लिए बना है। लेकिन, समय के साथ इसमें व्याख्यात्मक पेचिदगियाँ और राजनीतिक विवेक की जटिलताएं बढ़ी हैं। यह आवश्यक हो गया है कि इस पर व्यापक राष्ट्रीय विमर्श हो, ताकि लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास बना रहे और जनमत का अपमान न हो।


जहां तक कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रश्न है यह तकनीक अब भविष्य नहीं, वर्तमान बन चुकी है। इसके माध्यम से कार्यवाही की रिकॉर्डिंग, दस्तावेजों का डिजिटलीकरण, विधायी शोध, वर्चुअल बैठकों और डाटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्रों में विधायिकाएं अपने कार्य को और अधिक पारदर्शी, सुलभ और प्रभावी बना सकती हैं।
उन्होंने कहा कि साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि तकनीक मानवीय संवेदनाओं और संवैधानिक मूल्यों के स्थान पर न आ जाए, बल्कि उन्हें और सुदृढ़ करे।


राज्यपाल ने कहा कि हमारे लोकतंत्र की शक्ति उसकी बहस, चर्चा और संवाद की संस्कृति में निहित है। यह कॉन्फ्रेंस उसी परंपरा का एक सशक्त उदाहरण है। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि इन दो दिनों में जो विचार प्रस्तुत हुए हैं, वे न केवल राज्य विधायिकाओं की कार्यप्रणाली को और प्रभावी बनाएंगे, बल्कि संसदीय लोकतंत्र की जड़ों को और गहरा करेंगे।


राज्यपाल ने कहा कि आज का यह सम्मेलन ‘‘डिजिटल युग में सुशासनः संसाधनों का प्रबंधन, लोकतंत्र की रक्षा और नवाचार को अपनाना” जैसे विषय पर केंद्रित रहा, जो न केवल हमारे समय की मांग है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए एक दिशा भी तय करता है। डिजिटल तकनीकों के माध्यम से संसाधनों का कुशल प्रबंधन, सेवाओं की पारदर्शिता और नीति-निर्माण में भागीदारी बढ़ी है।

सुशासन अब केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक दृष्टिकोण बन चुका है, जिसमें नवाचार और डिजिटल सशक्तिकरण के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यह बदलाव विधायिकाओं को भी तकनीक और पारदर्शिता के साथ अधिक उत्तरदायी और संवेदनशील बनने की प्रेरणा देता है।


इस अवसर पर राज्य सभा के उप सभापति डॉ हरिवंश, उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री, विधान सभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया व विधान सभा उपाध्यक्ष विनय कुमार ने भी अपने विचार रखे।


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