कांगड़ा किला हिमाचल प्रदेश के सीधी तंग पहाड़ी पर बना हुआ है

कांगड़ा किला हिमाचल प्रदेश के पुराने कांगड़ा शहर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है. यह कांगड़ा शहर से 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर है. यह प्राचीन ऐतिहासिक किला माझी और बाण गंगा नदियों के बीच में एक सीधी तंग पहाड़ी पर बना हुआ है. नगरकोट किले के नाम से भी कांगड़ा किले को जाना जाता है. यह शहर प्राचीनकाल में 500 राजाओं की वंशावली के पूर्वज, राजा भूमचंद की त्रिगर्त भूमि की राजधानी था. कटोच शासकों के अलावा अनेक शासकों जैसे तुर्कों, मुगलों, सिखों, गोरखाओं और अंग्रेजों ने भी कांगड़ा किला पर राज किया था. पर्यटन की दृष्टि से वर्तमान समय में इस किले का संरक्षण और रख-रखाव रॉयल फैमिली ऑफ कांगड़ा, आर्कियालोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और हिमाचल सरकार करती है.

भारत का सबसे पुराना और हिमालय का सबसे बड़ा किला है कांगड़ा किला. इतिहास की झलक देखने और हिमाचल की सुंदरता निहारने के लिए भारी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं. कांगड़ा किले का गौरवशाली इतिहास और हिमाचल प्रदेश की सुंदर वादियां देश-विदेश से लाखों पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं. यह किला जितना देखने में सुंदर है उतना ही इसका इतिहास भी प्राचीन है. इस ऐतिहासिक किले का उल्लेख महाभारत में भी किया गया है, साथ ही जब यूनानी शासक अलेक्जेंडर ने यहां आक्रमण किया था तब भी ये किला यहां मौजूद था. वर्ष 1620 में मुगल बादशाह जहांगीर ने कांगड़ा किले पर फतह हासिल की थी और जनवरी 1622 में जहांगीर ने कांगड़ा किले में आकर अपने नाम से जहांगीरी दरवाजा और एक मस्जिद बनवाई, जो आज भी किले में मौजूद है.

मोहम्मद गजनी को भी भा गया था किला: यह शानदार किला समुद्र तल से 350 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और लगभग 4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. प्राचीनकाल में यह किला धन-संपति के लिए बहुत प्रसिद्ध था, इसलिए मोहम्मद गजनी भारत में अपने चौथे अभियान के दौरान पंजाब को जीतने के बाद सीधे 1009 ईसवी में कांगड़ा पहुंच गया था. इस किले में अदंर जाने के लिए एक छोटा-सा बरामदा है, जो की दो द्वारों के बीच में है. किले के प्रवेशद्वार को सिख शासनकाल के दौरान बनवाया गया था जिसका उल्लेख प्रवेशद्वार पर की गई शिलालेख से मिलता है. किले की सुरक्षा दीवार 4 किलो मीटर लंबी है, मेहराबदार का मुख्य प्रवेश द्वार महाराजा रंजीत सिंह के नाम पर है, जिसका निर्माण महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के दौरान किया गया था. लेकिन कहा जाता है कि जहांगीर ने पुराने दरवाजे को तुड़वा कर पुनः दरवाजे को बनवाया था इसलिए इसे जहांगीरी दरवाजा भी कहते हैं

किले में ऊपर जाकर दर्शनी दरवाजा है, जिसके दोनों ओर गंगा एवं यमुना की प्रतिमाएं बनी हुई हैं. यह किले के आतंरिक भाग का मुख्य प्रवेश द्वार है. कांगड़ा किले से दिखने वाली धौलाधार की खूबसूरत पहाड़ियां किले की सुंदरता में चार चांद लगा देती हैं. किले के पिछले हिस्से में बारूदखाना, मस्जिद, फांसीघर, सूखा तालाब, कपूर तालाब, बारादरी, शिव मंदिर तथा कई कुएं आज भी मौजूद हैं. यहां आने वाले सैलानी किले के अंदर वॉच टावर, ब्रजेश्वरी मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर और आदिनाथ मंदिर के भी दर्शन करते हैं. 9वीं-10वीं सदी में हिन्दू एवं जैन मंदिरों के रूप में इस किले के प्राचीनतम अवशेष विद्यमान हैं.

04 अप्रैल 1905 को कांगड़ा में आए भयंकर भूकंप से इस ऐतिहासिक धरोहर कांगड़ा किले को भी भारी नुकसान हुआ था. जिसके बाद किले के बेहतर रख-रखाव के लिए इसे दोबारा कटोच वंश को सौंप दिया गया था. इस किले में रॉयल फैमिली ऑफ कांगड़ा ने साल 2002 में महाराजा संसार चंद संग्रहालय की भी स्थापना की थी, जिसमें कटोच वंश के शासकों और उस समय में प्रयोग होने वाली युद्ध सामग्री, बर्तन, चांदी के सिक्के, कांगड़ा पेंटिंग्स, अभिलेख, हथियार और उस समय की अन्य वस्तुओं को संजोए रखा है. वहीं, यहां आए स्थानीय लोगों व पर्यटकों का कहना है कि यह दुर्ग इतिहास को अपने आप में समेटे हुए है और भारी संख्या में पर्यटक इस किले को देखने के लिए पहुंचते हैं.


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