हिमाचल हाईकोर्ट के बिल आधारित अस्थाई कर्मियों के फैसले से पैरा वर्करस में जगी उम्मीद
हिमाचल हाईकोर्ट के बिल आधारित अस्थाई कर्मियों को भी दैनिक भोगी कर्मचारियों की तरह नियमित करने के आदेश पारित किए जाने से प्रदेश के विभिन्न विभागों में बिल आधारित अस्थाई कर्मियों में उम्मीद जगी है।
HC के फैसले से जल शक्ति विभाग के पैरा वर्करस उत्साहित, हाईकोर्ट जाने को तैयार
हिमाचल हाईकोर्ट के बिल आधारित अस्थाई कर्मियों को भी दैनिक भोगी कर्मचारियों की तरह नियमित करने के आदेश पारित किए जाने के इस फैसले से जल शक्ति विभाग के (Pera Workers) पैरा पम्प ऑपरेट, पैरा फिटर मल्टी पर्पस वर्करस भी उत्साहित है और अपने भविष्य को लेकर हाईकोर्ट जाने की तैयारी में हैं।
पैरा वर्कर्स नियुक्त करने की सरकार क्या रही मन्शा
हिमाचल प्रदेश के जल शक्ति विभाग में पैरा नीति के तहत साल 2020 व साल 2021 में पैरा पंप ऑपरेटर,पैरा फिटर और मल्टी पर्पस वर्कर्स जल शक्ति विभाग द्वारा नियुक्त किये गये थे। तत्कालीन सरकार की पैरा वर्कर्स नियुक्त करने की मन्शा साफ नहीं हो पाई है।
विभाग के इस कार्य के लिए पद खाली चल रहे थे, जिन्हे आधे से भी कम दिहाडी के वेतन पर अधिक लोगों को रोजगार देने की राजनीति का खेल खेला गया और हजारों युवाओं को इस (Pera Workers) झंझट में झोक दिया है। अब यह कार्य न करते और छोडे बन रहा है।
मजेदार पहलु है कि पैरा नीति (Pera Workers) के तहत पैरा पंप ऑपरेटर,पैरा फिटर और मल्टी पर्पस वर्कर्स की तैनाती नियुक्ति तो मात्र 6 घंटे के लिए की गई है। जबकि विभाग द्वारा पैरा पंप ऑपरेटर,पैरा फिटर को 6300 और मल्टी पर्पसवर्कर को 5000 रुपए प्रति माह शुल्क देकर मल्टी पर्पस वर्कर्स (Pera Workers) से 8 से 10 घण्टे बिना किसी अवकाश के काम लिया जा कर शोषण किया जा रहा है।
दुर्गम क्षेत्रों में जोखिम भरेकाम भी करते हैं (Pera Workers) पैरा वर्कर्स
पैरा वर्कर्स श्रेणी के कर्मचारी दुर्गम क्षेत्रों में भी काम करते हैं। इन पैरा वर्कर्स का योगदान कोरोना के दौरान भी महत्त्वपूर्ण और सराहनीय रहा है। कारोना काम के दौरान इस वर्ग द्वारा प्रदान की गई सेवाओं को विभाग और सरकार द्वारा खूब सराहा या है। अब मजबूरन यह वर्ग भी हाईकोर्ट की शरण लेने जा रहा है।
यह है प्रदेश हाईकोर्ट का निर्णय
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बिल आधारित अस्थाई कर्मियों को भी दैनिक भोगी कर्मचारियों की तरह नियमित करने के आदेश पारित किए हैं। हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने राम सिंह के मामले में निर्णय दिया है। कि प्रतिवादी वन विभाग अब दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी और बिल आधार पर काम करने वाले कर्मचारी के बीच जो अंतर पैदा कर रहा है, वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने कहा दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हो या बिल आधारित कर्मचारी, वह विभाग को एक जैसी सेवा दे रहे हैं। इसलिए, दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी और बिल बेस कर्मचारी के बीच विभाग द्वारा जो वर्गीकरण किया गया है, वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 की कसौटी पर खरा नहीं उतर सकता।
राज्य सरकार की दिनांक 22 अप्रैल 2020 की नीति के अनुसार नियमितीकरण के अधिकार से प्रार्थी को केवल इस आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता है कि अब उसका नामकरण दैनिक वेतनभोगी नहीं, बल्कि बिल बेस कर्मचारी है। यदि याचिकाकर्ता नियमितीकरण के मानदंडों को पूरा करता है, तो, उसे भी नियमितीकरण प्राप्त करने का अधिकार है और इसे केवल उस नामकरण के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता है, जो अब प्रतिवादी द्वारा उसे सौंपा गया है।
साफ है कि प्रार्थी की तरह कार्य करने वाले कर्मियों के मामले में विभाग की ओर से हालांकि दो बार नियमितीकरण करने के लिए स्क्रीनिंग की गई। हर वर्ष 240 दिनों से अधिक कार्य करने के बावजूद उन्हें नियमित नहीं किया गया। अंततः प्रार्थी को हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दाखिल करनी पड़ी। जिस पर यह अहम निर्णय आया है। हाईकोर्ट ने वन विभाग को निर्देश दिए कि वह प्रार्थी को राज्य सरकार की दिनांक 22 अप्रैल 2020 की नियमितीकरण नीति के अनुसार छह सप्ताह की अवधि के भीतर वर्क चार्ज/नियमितीकरण प्रदान करें। हालांकि, प्रार्थी को दिए जाने वाले वित्तीय लाभ याचिका दायर करने की तारीख से तीन साल तक सीमित रहेंगे।
प्रदेश के जल एवं शक्ति विभाग में कार्यरत पैरा वर्कर्स को नियमित करने को ठोस नीति बनाने की मांग की है।