अंशुल शर्मा।सरकाघाट।
हिमाचल किसान सभा खण्ड कमेटी ने पिछले कल शिमला में आयोजित सयुंक्त किसान मोर्चे के आह्वान पर सेब व अन्य फ़ल उत्पादकों के रोष प्रदर्शन के दौरान बागवानी मंत्री के शिमला में उपलब्ध न रहने की कड़ी निंदा की है।
सभा के खंड अध्यक्ष रणराज राणा महासचिव सुरेश शर्मा, बाला राम, कशमीर सिंह, रामचन्द ठाकुर, मेहर सिंह, कृष्ण देव, रुपलाल बिष्ट, रूपचन्द गुलेरिया, प्रकाश सकलानी, बालम राम, सूरत सकलानी, बलदेव ठाकुर इत्यादि ने कहा कि जब से महेंद्र सिंह ठाकुर को बागवानी विभाग का जिम्मा सौंपा गया है तब से बागवानों की समस्याओं का कोई स्थायी समाधान नहीं हो रहा है उल्टा उनमें बृद्धि हो रही है और मंत्री बागवानों की दिक्कतों का समाधान करने में पूरी तरह से विफल साबित हुए हैं।
किसान सभा के सदस्यों ने कहा कि मंत्रीगत पांच वर्षों में बागवानों की समस्याएं सही तरीके से समझ भी नहीं पाए हैं। गत वर्ष भी उन्होंने सेब को सड़क किनारे बैठकर बेचने वाला बेतुका ब्यान दिया था जिसका उन्हें भारी विरोध सहना पड़ा था।
लेकिन उसके बाद बीते समय में वे हिमाचल प्रदेश के बागवानों के लिए कोई राहत व सहायता प्रदान नहीं कर पाए हैं।इस बारे पूर्व ज़िला पार्षद भूपेंद्र सिंह ने कहा कि बाग़वानी मंत्री ज़्यादा समय जलशक्ति विभाग के कार्यों में लगाते हैं कियूंकि इस विभाग में अरबों रुपए का लेन देन होता है और काफ़ी हद तक इसमें भरस्टाचार और रिश्वतख़ोरी हो रही है जिस कारण इस मलाई वाले महकमें से मलाई खाने को ज़्यादा समय दिया जाता है।
जबकि हिमाचल प्रदेश जिसे सेब प्रदेश के रूप में जाना जाता है और हज़ारों करोड़ रुपये की आमदनी बागवानों को होती है लेकिन मंत्री इसके लिए समय नहीं देते हैं और इस सेब सीज़न में बागवानों को जो समस्याएं हो रही थी वे बागवानों के संगठनों से संवाद करने के लिए भी समय नहीं दे पाए और पिछले कल शिमला में न तो बागवानी मंत्री मौजूद थे और न ही मुख्यमंत्री थे जिसकारण हज़ारों किसानों की मांग को सरकार ने अनसुना कर दिया जो बहुत ही निंदनीय है।
भूपेंद्र सिंह ने बताया कि बागवानी मंत्री ने धर्मपुर विकास खण्ड में शिवा प्रोजेक्ट के तहत अमरुद के चार दर्ज़न बग़ीचे लगाने के लिए किसानों को तैयार किया है लेकिन जो अमरूद इन बगीचों में तैयार हो रहा है उसे बिक्री करने के लिए मार्किट की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करवाई है।जैसा कि अब हिमाचल प्रदेश में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं तो उसके बाद इन बगीचों का भविष्य क्या होगा इस पर भी सवालिया निशान है।