अंशुल शर्मा।ब्यूरो।
हिमाचल प्रदेश में काले महीने के समय नईं नवेली बहु को मायके भेज दिया जाता है और अपने दूल्हा घर में ही रहता है।
ना सास बहु का मुंह देखे और न दामाद अपनी सास का मुँह देखे।इसके पीछे किवदंती है कि यदि सास इस महीने में बहु का मुँह देखेगी तो उसे परेशानियों का सामना करना पड़ेगा और यदि सास अपने दामाद का मुँह देखे तो सास को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।हालांकि वास्तविकता में ऐसा कुछ नुक्सान नहीं होता है।भला कोई अपनी माता के समान सास को देखे तो सास का नुक्सान क्यों होगा?नुक्सान होना होता तो पूरे भारतवर्ष या विश्व में हो जाता।यह सिर्फ पुराने बुजुर्गों का अपनी गरीबी छुपाने के तरीका था।बरसात में लोगों की फसलों का काफी नुक्सान हो जाता था और अनाज की कमी पड़ जाती थी।नईं बहु का सामने खाली हाथ होना बुजुर्गों के लिए अपमानजनक था, इसलिए वो अपनी बहु को बहाना बनाकर मायके भेज देते थे ताकि मायके में उसको किसी प्रकार की कमी ना लगे।दामाद भी ससुराल नहीं जाता था ताकि गरीबी के दौर में ससुराल वालों पर उसकी आदर खातिर करने की जिम्मेवारी ना पड़े।इस प्रकार बुजुर्गों के इस नुस्खे ने प्रथा का रूप ले लिया और यह प्रथा हिमाचल प्रदेश में आजतक चली आ रही है।
जमाना पढ़ा लिखा और समझदार हो गया है, हर बात को बखुबी समझता है।लेकिन बुजुर्गों की इस परम्परा को निभाने का शौक रखते हैं।
काले महीने में मायके आई बहु कभी कभी अपनी सास को मजाक मजाक में कह देती है कि घर आ जाऊँ, आपको अपना चेहरा दिखाऊँ।
जिनकी नईं नईं शादी होती है, ये महीना उनके लिए कालापानी के सजा से कम नहीं होता है।अंगूर जैसे दूल्हे बीवी की जुदाई के गम में सूख कर किशमिश जैसे हो जाते हैं।इसलिए किसी नए दूल्हे ने कहा है –
एक महीने की दूरी,
हालत हुई बड़ी बुरी।
जब बहु अपने ससुराल वापस आती है तो सास के लिए रीति रिवाज के अनुसार बनाये जाने वाले पकवान और वस्त्र आदि ले जाती है।
ऐसी कुछ परम्पराएं हमारी संस्कृति में बनी रहनी चाहिए ताकि संस्कृति के कुछ अनछुए पहलू जिन्दा रहें।किसी महानुभाव ने काले महीने की समस्या का बड़ा अच्छा समाधान निकाला है कि दूल्हा दुल्हन महीने भर के लिए वर्ल्ड टूर पे निकल जाएंगे।कोई भी अपनी सास का मुंह नहीं देखेगा और पति पत्नी इक्कठे भी रह लेंगे।समाधान तो अच्छा है, लेकिन वर्ल्ड टूर के लिए पैसा कहाँ से आएगा।पैसे के जुगाड़ की जानकारी के लिए जुड़े रहें हमारे न्यूज चैनल के साथ।