पूजा सूद, प्रागपुर :केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के बालाहर स्थित वेदव्यास परिसर में आगामी 31अगस्त से सात दिवसीय टांकरी लिपि प्रशिक्षण पर राष्ट्रिय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। कार्यशाला संयोजक डॉ यज्ञदत्त शर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश की मूल लिपि टांकरी रही है।
जिसमें यहां के सभी लोग अपने-अपने व्यवहार का लेखा-जोखा संरक्षित करते रहे हैं।उन्होंने बताया कि इसके साथ-साथ इसमें ज्योतिष,वास्तु, यन्त्र-मंत्र आदि शास्त्रीय विषयों के साथ कथा, लोकगीत आदि का भी लेखन करते रहे हैं। जिनको यहां वहां बिखरी पड़ी नष्ट हो रही पाण्डुलिपियों में देखा जा सकता है।
इतना ही नहीं राजाओं के समय भू-राजस्व का रिकार्ड इसी लिपि में आज भी प्राप्त होता है। यज्ञदत्त के अनुसार राजाओं के आदेश पत्र, दान पत्र, शिलालेख, ताम्र आदि धातु लेख भी इसी लिपि बहुत स्थानों पर प्राप्त होते हैं। लगभग 90 दशक पूर्व हिमाचल में अन्य लिपियों के प्रभाव से इस लिपि का ह्रास हुआ है। अब यह लिपि पोथियों तक सिमट कर रह गई है और अपने नाश के अन्तिम चरण पर स्थित है।
इसके पुनरुद्धार के लिए विश्वविद्यालय के यशस्वी कुलपति प्रो. श्रीनिवास बरखेड़ी के संरक्षकण में और परिसर की निदेशिक प्रो. सत्यम कुमारी के मार्गदर्शन में इस कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यशाला में पांडुलिपि मिशन नई दिल्ली के निर्देशक प्रो.अनिर्वाणदास 31 अगस्त से आगामी दो दिन तक ब्राह्मी और शारदा लिपि का प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। अन्य दिनों में परिसर के अध्यापक तथा टांकरी लिपि के जानकार छात्रों को टांकरी लिपि का प्रशिक्षण करवाया जाएगा।सात दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला का समापन 6 सितंबर को किया जाएगा।