चित्रकेतू ने किया शिव का अपमान,पार्वती ने दिया असुर होने का श्राप



कोटरूपी शिवपुराण कथा में उमड़ा भक्तों का शैलाब


किरण /पधर (मंडी)।


उरला के कोटरोपी में हो रही शिव महापुराण कथा शनिवार को 7वें दिन में प्रवेश कर गई । वर्ष 21017 में कोटरोपि त्रासदी में अकाल मौत ग्रास में  गए लोगों की आत्मा की शान्ति के लिए शिव महापुराण कथा का आयोजन किया जा रहा है । कथा व्यास जीवन कृष्ण शास्त्री ने  अपनी अमृतमयी शिव महापुराण कथा के महात्म्य से शिवपुराण में राजा चित्रकेतू को जब पार्वती ने श्राप दिया  के बारे में श्रवण करवाया। कहा कि शुकदेव से  कथा सुन रहे परीक्षित ने पूछा- वृटासुर असुर होने के बाद भी ब्रह्मज्ञानी कैसे निकला। शुकदेव ने वृटासुर के पूर्वजन्म की कथा सुनाई।सूरसेन के राजा चित्रकेतु धर्मपालक राजा थे। उनकी अनेक रानियां थी। लेकिन उनकी कोई संतान न हुई। राजा वंशहीन होने से बहुत दुखी रहते थे। एकबार ऋषि अंगिरा नारदजी के साथ चित्रकेतु के पास आए। अंगिरा ने कहा- आपकी प्रजा सुखी है कितु आप दुखी। इस कारण प्रजापालक होने के पुण्य से आप वंचित हो रहे हैं।
एक जैसे नदी में पड़े पत्ते और तिनके कुछ दूर साथ चलने के बाद अलग हो जाते हैं वैसे ही हम भी इस संसार में किसी न किसी बंधन से बंधे साथ आते हैं और समय पर अलग हो जाते हैं। ये उपदेश सुनकर भी चित्रकेतु को शान्ति नहीं मिली। तब नारद ने अपनी शक्ति से उस जीवात्मा का आह्वान किया जो चित्रकेतु का पुत्र बनकर आया। नारद ने आत्मा से कहा- तुम्हारे पिता शोक संतप्त हैं। उन्हें धैर्य बंधाओ। तुम चाहो तो मैं पुनः इस शरीर में प्रवेश करा सकता हूं ताकि पुत्र बनकर अपने माता-पिता को सुख दे सको। आत्मा ने कहना शुरू किया। आप मेरे किस माता-पिता की बात करते हैं। मैंने तो अनगिनत जन्म लिए हैं। मेरे अनेक माता-पिता रहे हैं। मैं किस-किस को प्रसन्न करूं। इन दोनों शरीरों को मैं अपना माता-पिता कैसे मान लूँ।  देह त्यागते ही मेरा इनसे कोई नाता न रहा। मैं किसी का पुत्र नहीं न ही कोई मेरा माता-पिता। मैं इनके घर नहीं आना चाहता।आत्मा की बात सुनकर चित्रकेतु का मोहभंग हुआ। नारदजी ने राजा को नारायण मन्त्र की दीक्षा दी। चित्रकेतु ने मंत्र का अखंड जप करके नारायण को प्रसन्न किया। भगवान ने दर्शन देकर एक दिव्य विमान दिया। चित्रकेतु भगवद् दर्शन से चैतन्य होकर सिद्धलोक आदि में भी विचरण करते रहते। वह विमान में बैठकर कैलाश के ऊपर से गुजर रहे थे। उनकी नज़र शिवजी पर पड़ी। महादेव सिद्ध आत्माओं को उपदेश दे रहे थे। पार्वतीजी उनकी गोद में बैठी थी।यह देख चित्रकेतु हंसे और कहा- सिद्धों की सभा में महादेव स्त्री का आलिंगन किए बैठे हैं।आश्चर्य है कि इन ज्ञानियों ने भी इन्हें ऐसे अमर्यादित कार्य से नहीं रोका। महादेव ने तो अनदेखी कर दी लेकिन पार्वतीजी को क्रोध हो आया। उन्होंने चित्रकेतु को शाप दिया- जिसकी निंदा की योग्यता स्वयं श्रीहरि में नहीं तुम उसकी निंदा करते हो। तुम असुर कुल में चले जाओ।चित्रकेतु पार्वतीजी के पास आए और प्रणाम कर कहा- माता मैंने मूर्खता में आपका अपमान किया। इसका दंड मिलना ही चाहिए। मैं इस शाप को भी श्रीहरि की कृपा की तरह लेता हूं। महादेव ने पार्वतीजी से कहा- यह हरिभक्त है। किसी भी जीवन से उन्हें भय नहीं होता। नारायण भक्तों के हृदय में निवास करते हैं।
शुकदेवजी परीक्षित से बोले- हे राजन। चित्रकेतु में इतनी शक्ति थी कि वह इस शाप पर क्रोधित होकर माता को शापित कर सकते थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया।वही चित्रकेतु जगदंबा के शाप के कारण वृटासुर हुए थे। नारायण नाम को धारण करने के कारण उनमें पूर्वजन्म का ज्ञान शेष था। इंद्र के साथ शत्रुता भी वह नारायण का आदेश समझकर निभा रहे थे। इस अवसर पर  उरला महिला मंडल ने अपनी तरफ से विशाल भंडारे का आयोजन भी किया। इस मोके पर देशराज,ओम प्रकाश, नवींन, भोला शर्मा, तत्तकाल सेवा समिती के सदस्य नवीन महन्त ,राकेश ठाकुर, राजीव ठाकुर , महिला मण्डल व ग्राम पंचायत प्रधान उरला ममता मित्तल, महिला मंडल कोटरूपी दो की प्रधान पुष्पा देवी, रीता देवी, अनिता देवी, व बड़वाहन महिला मंडल, उरला महिला मण्डल ,सनोहली, मस्वाहन महिला मण्डल व समस्त ग्राम वासी उपस्थित रहे । 

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