मंडी
अंतर्राष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के समापन से पहले चौहाटा की जातर में देवी-देवताओं के दर्शनों के लिए भारी जनसैलाब उमड़ा।
बता दें कि महोत्सव के समापन वाले दिन जिला भर से आए देवी-देवता चौहाटा बाजार में विराजते हैं जिसे चौहाटा की जातर कहा जाता है। सैंकड़ों देवरथों को एक स्थान पर रखा जाता है जहां हजारों की संख्या में जलसैलाब देवी-देवताओं के दर्शनों और आशीर्वाद के लिए उमड़ते है। यह जातर सुबह 8 बजे से शुरू हो जाती है और दोपहर को महोत्सव के समापन से पहले अधिकतर देवी-देवता अपने मूल स्थानों की तरफ प्रस्थान कर देते हैं।
स्थानीय निवासी खुशाल ठाकुर और आकाश शर्मा ने बताया कि चौहाटा की जातर का अपना एक अलग महत्व है। पूरे महोत्सव में जो व्यक्ति देवी-देवताओं के दर्शनों से चूक जाता है उसे यहां पर यह मौका एक साथ मिलता है। इन्होंने बताया कि सभी देवी-देवताओं से अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखने का आशीर्वाद मांगा है।
वहीं, गत वर्ष से महोत्सव में रियासत काल के बाद फिर से आना शुरू हुए देवता खुड्डी जहल के दर्शनों के लिए भी भारी जनसैलाब दिखाई दिया। बता दें कि देवता खुड्डी जहल का मंदिर मंडी और कुल्लू जिलों की सीमाओं पर स्थित है। पहले देवता खुड्डी जहल शिवरात्रि महोत्सव में आते थे और राजपरिवार का इनके प्रति अटूट विश्वास था। लेकिन प्रशासन के पास महोत्सव की बागडोर आने के बाद देवता ने मेले में आना बंद कर दिया था। गत वर्ष से देवता ने फिर से आना शुरू किया है और बड़ी संख्या में लोग इनके दर्शन करके आशीवार्द ले रहे हैं।
देवता खुड्डी जहल के पुजारी रूप लाल शर्मा ने बताया कि देवता की चार जिलों में मान्यताएं हैं। देवता किसी विशेष मनोकामना के लिए नहीं बल्कि सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए जाने जाते हैं। अब देवता वापिस जाएंगे तो बहुत से लोगों ने देवता को अपने घरों पर आने का निमंत्रण दिया है। देवता अपने भक्तों के घरों पर रूकते हुए वापिस अपने मूल स्थान तक जाएंगे।
बता दें कि महोत्सव के अंतिम दिन अधिकतर देवी-देवता चौहाटा की जातर के बाद वापिस अपने मूल स्थानों की तरफ रवाना हो जाते हैं। सिर्फ कुछ प्रमुख देवी-देवता ही जलेब में शिरकत करते हैं। अब यह देवी-देवता एक वर्ष बाद फिर से मंडी में अपनी दस्तक देंगे और लोगों को अगली शिवरात्रि पर इस भव्य देव मिलन का दृश्य देखने को मिलेगा।
