एतिहासिक “रुक्मिणी कुण्ड” में पूजा अर्चना व झंडा रस्म के साथ मेला शुरू, पूर्व प्रधान ने किया शुभारंभ


झंडूता

झंडूता उपमंडल के ग्राम पंचायत जांगला के अंतर्गत आस्था के प्रतीक रुक्मिणी कुण्ड में तीन दिवसीय बैशाखी मेले का शुभारंभ पूर्व प्रधान जांगला किशोरी लाल द्वारा मंदिर में पूजा अर्चना व झंडा रस्म के साथ किया गया। उन्होंने रुक्मणी कुंड का एतिहास बताते हुए कहा कि रुक्मणी कुंड को रुक्मणी के बलिदान का स्थान माना जाता है यहां कुछ वर्षों से बलिदानी के नाम पर पूजा शुरू हुई। कुआँ खोदने के उनके बार-बार प्रयासों के बावजूद पानी की कमी के कारण पूरा औहर क्षेत्र संकट में था।

एक बार बरसंध के शासक को स्वप्न आया कि यदि उसके पुत्र या पुत्रवधू की बलि दी जाये तो जल निकल सकता है। किंवदंती है कि तरेढ़ गांव की रुक्मणी नाम की एक नवविवाहित युवती, जिसकी शादी बरसंध गांव के राजपूत शासक रुंध परिवार से हुई थी, को उस स्थान के किनारे जिंदा दफना दिया गया था, जिसे बावली खोदने के लिए चुना गया था। बहू रुक्मणी ने खुद को अपने पति की प्राथमिकता में पेश किया। उन्होंने अपना जीवन बलिदान कर दिया और वर्तमान रुक्मणी कुंड उनके साहसी कार्य का परिणाम है।

ऐसा कहा जाता है कि उन्हें उस स्थान पर जिंदा दफनाया गया था जहां आज यह कुंड है। बौद्ध कला और हिमाचल प्रदेश की पुरावशेषों में ओमकंडा हांडा के अनुसार, 8वीं शताब्दी ईस्वी तक, महिला बलिदान की ऐसी कहानियां आम उदाहरण थीं जिनमें पानी के लिए नागा देवता को महिलाओं की बलि दी जाती थी। लाहुल घाटी के गुशाल गांव की रूपी रानी, चंबा के राजा साहिल वर्मन की रानी नयना, सिरमौर की बिची और जम्मू के किश्तवाड़ की कंडी रानी जैसी ऐसी ही कहानियों पर विचार किया जा सकता है, जिन्हें पानी के लिए नागा देवता को बलिदान कर दिया गया था।

नागा देवता के लिए मानव बलि ऑस्ट्रिक जनजातियों की सबसे विशिष्ट विशेषताओं में से एक रही है ।कुंड की दीवारों पर लटकी घास को उनकी जटाएं माना जाता है। और यह जलाशय के पानी की जादुई शक्ति के कारण वहां मौजूद है। रुक्मणी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए लोग घास पर रिबन, चूड़ियाँ बाँधते हैं। यह भी माना जाता है कि इस जलाशय का पानी त्वचा रोगों को ठीक कर सकता है। तरेड गांव की रहने वाली थीं और आज भी रुक्मणी के गांव के लोग कुंड का पानी नहीं पीते हैं और न ही उसमें स्नान करते हैं।

उन्हें अपनी बेटी के बलिदान पर कितना गर्व है। बैसाखी पर्व पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचकर पुण्य स्नान किया व मां रुक्मिणी की आराधना की । बैसाखी पर तीर्थ स्थल पर स्नान का विशेष महत्व होता है । स्थानीय ग्राम पंचायत व जल शक्ति विभाग द्वारा कुंड में स्नान करने पर पाबन्दी लगाई गई है क्योंकि रुक्मिणी कुंड क्षेत्र के कई गांवों के लिए जल आपूर्ति का स्रोत है ।

प्रधान सरला चंदेल ने बताया कि पूर्व प्रधान किशोरी लाल ने ही वर्ष 2002 में पंचायत भवन के लिए 5 विस्वा जमीन विभाग के नाम की थी जिससे पंचायत का अपना भवन अस्तित्व में आया।

इस मौके पर प्रधान सरला चंदेल, उप प्रधान अमर नाथ कौंडल, पंचायत सचिव कर्म दयाल शर्मा, ग्राम सेवक निक्कू राम, प्रताप सिंह चंदेल, विजय चंदेल,सदस्य चंद्र किरण , पूनम कुमारी, सपना, नीलम कुमारी, दिलबर चंदेल, गौरव शर्मा, शशि कुमार समेत अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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