अंशुल शर्मा।सुंदरनगर
मंडी जिले के सुंदरनगर क्षेत्र के एस्ट्रोलॉजर निखिल कुमार ने पंचांग पर अपने मत प्रस्तुत किए है।
उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि पञ्चाङ्ग, मनुष्य के कल्याण के लिए ईश्वर का दिया हुआ अमूल्य वरदान है।पञ्चाङ्ग, समय के शुभ और अशुभ क्षणों की गणना का साधन है जिसमें इसके पाँच अंगों ( तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण ) के प्रयोग से शुभ और अशुभ क्षणों का ज्ञान करते हैं।
किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त का निर्णय पञ्चाङ्ग से ही होता है।
किसी ने कहा है –
_बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताय।_
_काम बिगाड़े आपणा, जग में होत हंसाय।_
अर्थात – बिना विचारे काम करने से स्वयं का नुक्सान और समाज में अपमान मिलता है।
पञ्चाङ्ग समय के क्षणों पर विचार करके, सही क्षणों का उपयोग करने का उपकरण भी कहा जा सकता है।
उदाहरण के लिए पंचक की गणना का ही बहुत महत्व है, पंचक में शुरू किए गए कार्य में यदि लाभ होने लगे तो 5 गुणा होगा और यदि नुक्सान शुरू हुआ तो वो भी 5 गुणा होगा।
इसलिए अधिकतर कार्य पंचक में टाल दिए जाते हैं ताकि लाभ हानि की चिंता ही न रहे।
जब तक हमें पञ्चाङ्ग के प्रयोग का ज्ञान नहीं होगा, तब तक किसी भी कार्य के लिए मुहूर्त का निर्णय ले पाना असंभव है।
किसी भी प्रकार का पूजा पाठ या कर्मकाण्ड किया जा रहा हो तो सबसे पहले मुहूर्त की आवश्यकता पड़ती है, उसके बाद जब सँकल्प लिया जाता है तो सँकल्प में तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण का उच्चारण भी किया जाता है, जिससे कि पूजा का सही फल मिलता है, बिना इसके पूजा अथवा कर्मकाण्ड व्यर्थ ही जाता है।
पञ्चाङ्ग के अनुसार जब कोई सँकल्प लेता है तो उसमें में तिथि, नक्षत्र, वार आदि के अलावा मवन्तर, युग और उनके व्यतीत हुए सालों, महीनों, तिथियों आदि से लेकर वर्तमान समय तक की स्पष्ट गणना का वर्णन है हो जाता है।
पञ्चाङ्ग के माध्यम से जब समय के सही क्षणों का उपयोग किया जाता है तो मनुष्य के कार्यों में सफलता मिलती है, नुक्सान से बचा जाता है और उन्नति प्राप्त करके मनुष्य अपना तथा दूसरों का कल्याण कर सकता है।
*पंचांग के पांच अंग*
तिथिर्वारश्च नक्षत्र योगः करण मेव च ।
एतेषां यत्र विज्ञानं पंचांग तन्निगद्यते ।।
अर्थात : पाँच अंगो के मिलने से बनता है, पंचांग जो ये पाँच अंग इस प्रकार हैं: तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण है। सनातन धर्म में पंचांग का पठन पाठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है, इसलिए भगवान श्रीराम भी पंचांग का श्रवण करते थे ।
एक सप्ताह में 7 दिन या 7 वार होते है। सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार। इन सभी वारो के अलग अलग देवता और ग्रह होते है जिनका इन वारो पर स्पष्ट रूप से प्रभाव होता है।
नक्षत्रो के नाम: 1.अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृत्तिका, 4. रोहिणी, 5. मृगशिरा, 6. आर्द्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. अश्लेषा, 10. मघा, 11. पूर्वाफाल्गुनी, 12. उत्तराफाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाति, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढा, 21. उत्तराषाढा, 22. श्रवण, 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वाभाद्रपद, 26. उत्तराभाद्रपद और 27. रेवती।
27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।
एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। इसमें विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।