संजय कालिया जालंधर (पंजाब)
जगद्गुरू प्रभुपाद श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी द्वारा स्थापित

तीसरा मठ, (श्रीमध्व गौड़ीय मठ ) जो की सन् 1921में नारिन्दा, बांग्लादेश में बनाया था उसमें श्री हरि नाम रस धारा ( हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे) का प्रसार एवं प्रचार करने के लिए अखिल भारतीय श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के वर्तमान आचार्य पूजापाद् 108 त्रिदडी़ स्वामी भक्ति विचार विष्णु महाराज जी बांग्लादेश पहुंचे।
इस मौके पर श्रील पूज्यपाद विष्णु महाराज जी ने जगद्गुरू प्रभुपाद श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर के पद को याद करते हैं उन्होंने बताया कि
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” आददानस्तृणं दैन्तैरिदं यांचे पुनः पुनः ।
श्रीमद्रूप – रघुनाथ पदम्भोज धुलि:स्याद् जन्म -जन्मनि।।
इस परम पवित्र दिव्य श्लोक हमेशा करते हुए जगद्गुरू प्रभुपाद श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर बताते थे कि आप सब इस विषय को समझने की विशेष रूप से कोशिश कीजिए कि जब सब जैसे नित्यकाल श्रील रुप -रघुनाथ के श्रीपादपघ धूली के सेवक हो पायें, तब नित्यकाल अप्राकृत बृजनवयुवद्बन्द्ब श्री श्री राधा कृष्ण जुगल किशोर के श्रीपादपद की प्रेम सेवा प्राप्त कर सकेंगे।
श्रीलरूप- रघुनाथ राजा जैसे ऐश्वर्यवान होकर भी परम पवित्रम श्री कृष्ण सेवा में श्रीमती की नगन्या दासी के रूप में जो अप्राकृत महान निर्मल स्थापित किया वह जगत वासी वर्णना में संपूर्ण असमर्थ है। इसके अंदर समस्त गोस्वामिओं अपेक्षित श्रीमती कि श्रीचरणरज: सेवा के दासित्व प्राप्त करने के लिए श्री रघुनाथ दास गोस्वामी के वैराग्य एवं आरर्ति, इतना गंभीरतम रूप लिया जैसे पृथ्वी देवी का भी हृदय विदीर्ण हो गया ।
अत: (श्रीलप्रभुपाद) विशुद्ध पदवाच्य परम पवित्रतम शुद्धसत्त्व विग्रह एवं समस्त जगत के जगत गुरु रूप मैं परम वरनीय, वंदनीय, स्मरणीय, अर्चनीय, एवं नित्य कीर्तनीय एकमात्र श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर व्यतीत और कौन हो सकता है।