आनंद सूद , परागपुर हिमाचल प्रदेश
रविवार को परागपुर गढ़ रोड तालाब किनारे प्रवासियों द्वारा छठ पूजा पर्व धूमधाम से मनाया गया । जिसमें उत्तर प्रदेश व बिहार से परागपुर व आसपास के इलाके में रह रहे प्रवासियों द्वारा पूरी श्रद्धा और भक्ति से पूजा अर्चना की गई। इस अवसर पर आए विनोद अर्जुन प्रकाश दीपक सचिन मुनीश प्रभु ने बताया कि ये त्यौहार उनके गांव में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें वे डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है, पहली बार चैत्र मास में और दूसरी बार कार्तिक मास में इसे मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को ‘चैती छठ’ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है। इसका एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है।
महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत हिंदू मान्यता के मुताबिक, कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।

द्रोपदी ने भी रखा था छठ व्रत
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इस किवदंती के मुताबिक, जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई। इस अवसर पर पूजा करने पहुंची चिंतामणि पिंकी शालू आदि ने बताया कि इस पूजा को करने से सब मनोकामनाएं पूरी होती हैं