संजय कालिया जालंधर (पंजाब)
हम उन परम वैष्णव श्रीहरिदास ठाकुर जी को प्रणाम करते हैं एवं उनके प्रभु परम करुणामय श्रीचैतन्य देव जी को भी प्रणाम करते हैं।
जिन्होंने हरिदास जी के प्राण छोड़ने के बाद उनके शरीर को गोद में लेकर नृत्य किया था।
लीला कुछ इस प्रकार से है…….
जब हरिदास ठाकुर जी को यह ज्ञात हो गया कि महाप्रभु जी जल्दी ही इस जगत से अपनी लीला संवरण करेंगे, तो उन्होंने महाप्रभु जी से पहले ही अपनी अप्रकट होने की इच्छा की क्योंकि वे महाप्रभु का विरह सहन नहीं कर सकते थे । जबकि दूसरी ओर महाप्रभु जी के लिए भी अपने भक्त का विरह सहन करना उतना ही कठिन था ।
भक्त वत्सल महाप्रभु जी ने भक्त विरह में व्याकुल होने पर भी उनकी इच्छा को पूरा करने की सम्मति दे दी। सब भक्त उस समय उच्च स्वर में कीर्तन कर रहे थे।
श्रीहरिदास ठाकुर जी ने महाप्रभु जी को अपने सन्मुख रखकर अपने दोनों नेत्रों से उनका मुख कमल दर्शन करते- करते तथा हृदय में महाप्रभु जी के पादपद्म धारण करते हुए अश्रुयुक्त नयनों से श्री कृष्ण चैतन्य श्री कृष्ण चैतन्य .
नाम का उच्चारण करते हुए ,जिस प्रकार भीष्म पितामह ने अपनी इच्छा से अपने प्राणों का विसर्जन किया था उसी प्रकार अपनी इच्छा से अपने देह का त्याग कर दिया । महाप्रभु प्रेम विहल होकर श्रीहरिदास जी के शरीर को गोद में उठाकर नृत्य कीर्तन करने लगे और महाप्रभु जी ने बोला हरिदास जी पृथ्वी पर सर्व शिरोमणि थे ,अब उनके बिना यह धरती रत्न शून्य हो गयी है

*सभी भक्त जय हरिदास- जय हरिदास जी की उच्च ध्वनि करने लगे*
वैष्णव किसी भी कुल में जन्म ले सकते हैं —- यह दिखाने के लिए ही महाप्रभु जी ने अपने पार्षदों को भिन्न -भिन्न कुलों में प्रकट करवाया।
हरिदास ठाकुर जी ने मुसलमान कुल में जन्म ग्रहण किया।
निष्कपट रूप से निरंतर हरिनाम करने वालों को विश्वमोहनकारी मायादेवी भी शुद्ध भक्ति की पथ से च्युत नहीं कर सकती। इसके साक्षात् उदाहरण स्वरूप हैं —– नामाचार्य श्री हरिदास ठाकुर ।
हरिदास ठाकुर जी ने उच्च स्वर से हरिनाम की महिमा को विशेष रूप से समझाया। उन्होंने बताया कि जप की अपेक्षा उच्च स्वर से कीर्तन करने वाला सौ गुना श्रेष्ठ है।
जपकर्ता तो मात्र अपने को ही पवित्र करता है ,जबकि उच्च स्वर वाला अपने को तो पवित्र करता ही है और सुनने वाले को भी पवित्र कर देता है।